मैं गई नहीं जिंदा हूँ, एक सफ़ेद रंग का परिंदा हूँ

जानते नहीं तो जानो मत मुझे, पहचानते नहीं तो पहचानो मत मुझे

इस ही भीड़ का हिस्सा हूँ, एक सफ़ेद रंग का परिंदा हूँ…

चाहती तो थी आसमानों में उड़ना, पर अरमानो को पंख न मिले

उस रात उन दरिंदो ने, घेर कुछ ज़ख़्म थे दिए

जहाँ भर के ज़ुल्म सहे मैंने, आखिर तक मैं लड़ी

नाइंसाफी के जाल में, आखिर थी मैं खड़ी

जा रही हूँ ये सोच कर चुप न बैठना तुम

कुछ लफ्ज़ छोड़े जा रही हूँ, उन्हें आवाज़ देना,

एक एक इंसान को रुला दिया

ख़तम होने न दो ये लड़ाई है, कहानी तुम्हे मैंने अपनी सुनाई है

ज्यादा नहीं, बस एक दर्दभरा किस्सा हूँ

एक भीड़ का हिस्सा, एक सफ़ेद रंग का परिंदा हूँ.

-Saanica Wahal