“किस्मत ” – क्या कहा आप सब मानते हैं? पर क्यों? सबको कहते सुना है कि सब किस्मत का खेल है। मेरी किस्मत ही ख़राब थी इस कारण मुझे इस काम में सफलता नहीं मिली। उसकी किस्मत में लिखा था तो उसे उसका फल मिला। किस्मत पर तो कई हिंदी गीत भी गाए गए हैं और तो और कुछ फिल्में भी प्रदर्शित हुई हैं। केवल भारत में ही नहीं वरन हॉलीवुड में भी किस्मत पर फिल्मे बनी हैं – किस्मत, किस्मत अपनी-अपनी, किस्मत कनेक्शन, कहानी किस्मत की, किस्मत के खेल, किस्मतवाला, लकीरें किस्मत की, डार्क फेट, देन एंड नाउ, (द फेट ऑफ़ द फुरियस ), ट्विस्ट ऑफ़ फेट, द फेट ऑफ़ फुरियस और भी बहूत सारि फिल्में हैं जो किस्मत को लेकर बनाई गई हैं।

किस्मत का लेखा देखो की मै आज किस्मत को सार बनाकर लिख रहा हूँ। इसका मतलब है कि यह सब मेरी किस्मत में लिखा था कि मैं एक दिन किस्मत के बहाने पर कुछ लेख लिखूँ ! लेकिन यह किस्मत है क्या जो इतना भाव खाती है और इतना आग्रह मांगती है या फिर मनवाती है। क्या है इसमें ऐसा कि लोग इसके सहारे पार पा जाते हैं और बदकिस्मत लोग सहानुभूति दिखा कर फिर अपनी दिनचर्या में लीन हो जाते हैं।

वह सिकंदर की ही किस्मत थी कि उसने विश्व विजेता का सपना साकार किया लेकिन वह भारत ही है जिसने उसकी किस्मत को लग़ाम लगाई। इसके बाद सिकंदर ने केवल आखिरी सांस ही ली। उसकी किस्मत में भारत भूमि में अपने पापों को धोना लिखा था। भारत की पारम्परिक देव शक्ति हर किसी के पाप एंव ताप को शांत करके उसे मोक्ष प्रदान करती है और फिर सिकंदर कोई तुच्छ योद्धा तो था नहीं। उसके मोक्षं की प्राप्ति भारत भूमि में होना स्वाभाविक ही था या यों कहो की उसकी किस्मत में उसके पाप और ताप का शिथिल होना भारत मे ही निश्चित था। हुआ न गर्व अपनी मातृभूमि पर। क्यों न हो, यह धरा है ही ऐसी जो अपने में अनेकता में एकता संजोए है। यह काम केवल एक बागीचा ही कर सकता है। तभी इसे गुलिस्तां कहा जाता है। बाकियों में कहाँ यह खूबी है। वाह ! यह सुनकर एवं जानकर मन प्रफुल्ल्ति हो गया। हाँ कुछ तो बहाना चाहिए हमें ताकि हम अपने मन और मस्तिष्क पर विजय प्राप्त कर अपने न्यूरोन्स को संचालित कर सकें और हमें ख़ुशी की अनुभूति हो। मन मदमस्त हो खुश होकर हमारे जीवन में रस का एवम गर्व का बोध कराये।

एक “बहाना ” बस फिर हम धरा से फ़लक़ तक की दूरी पल भर में तय कर देते हैं। वह भारत की ही किस्मत थी की जब पोखरण में पहली बार भारत ने विश्व के प्रतिबन्ध के बावज़ूद भी परमाणु परीक्षण करके दुनिया में भूकंप ला दिया था। सिर्फ एक बहाना काफी था जिसे पहले भारतीय किस्मत और मजबूरी का चोला पहना कर प्रगति नहीं कर पा रहे थे, लेकिन फिर हमारे अणु वैज्ञानिको ने डंके की चोट पर साबित करके दिखाया की उनकी काबिलियत को कम करके आँका नहीं जा सकता। नतीजन आज भारत एक परमाणु शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। “बहाना ” ही था की हमारी पहले की सरकारें अनेकोनेक बहाने देकर कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही थी जिससे भारत का चौमुखी विकास नहीं हो सका। भारत का गौरवशाली इतिहास भारत के सिवा सभी पश्चिमी देशों में विश्लेषण के तौर पर स्वीकार किया गया। परन्तु फिर सरकार परिवर्तन होने पर फिर से हमारा गौरवशाली इतिहास को अपनाने की बातें होने लगीं।

किस्मत – एक “बहाना”! हाँ हमारे बुद्धिमान पूर्वजों ने कितना सरल और असरदार शब्द का इज़ाद किया जो अपनेआप में एक अध्ययाय सम्मिलित किये हुए है। परिकल्पना है की इससे हमारी उस समय के भटके हुए वंशज जो शायद उस समय अपनी किसी असफलता के कारणवश बहुत निराश एवम अन्यमनस्क होकर अपने जीवन को किसी निष्कर्श तक पहुँचाने की होड़ में लगे रहे होंगे। उनको उनके उन मानसिक विषंगतियों से उभार पाना लगभग नामुमकिन था। ऐसे समय में हमारे बुद्धिजीवियों ने ‘किस्मत’ शब्द दिया और फिर उसे परमात्मा की मर्जी का चोला पहना दिया होगा। चूंकि उस समय का मनुष्य भगवान् में अपार श्रद्धा रखता था, इसी श्रद्धा को ढाल बनाकर उन्होंने ‘किस्मत’ शब्द को प्रभु जो निराकार और सर्वशक्तिमान है और जिसके सम्मुख कोई भी पार नहीं पा सकता की मर्जी बताकर उन विवेकहीन, भटके हुए निराश जीवों को एक नई उम्मीद की किरण दिलाई होगी और उन्होंने फिर नई कोशिशें शुरू की होंगी। इससे उनका हौसला बढ़ा होगा और फिर वही निराशा उनके जीवन में नई आशा की किरण लेकर आई होगी। वह एक “बहाना” ही होता है की जब एक नवयुवक रोजगार की तलाश में अपने घर से अलग हो जीना सीखता है और संसार के चक्र को बनाये रखने में अपना योगदान देता है। उसे पूरा आभास होता है की उसकी हिस्से में मेहनत और कष्ट भी होंगे जिसके लिए उसे हिम्मत नहीं हारनी है और कभी न कभी उसे अपना घरबार छोड़ पराये और अनजान क्षेत्र में जाकर जीविका का साधन ढूंढना है।

यह भी मात्र एक बहाना ही है की आज रानू मोंडल एक नामी गरामी गाइका बन गई है जो कल तक दरबदर की ठोकरें खा रही थी और जिसे जिसकी बेटी ने भी परित्याग कर दिया था और जिसे हम उसकी किस्मत में होना मान रहे हैं। सच तो यह है की हमें हमारी असफलता को स्वीकार करना आता ही नहीं। हमें अपनी आधी अधूरी मेहनत होना मानकर स्वयं को सांत्वना देकर दूसरों की सांत्वना लेने का भ्रम में जीना चाहते हैं ताकि दूसरा हमारी कमजोरी को न जान पाए। जो भ्रम में रहते है वे सभी अपने जीवन में कभी तरक़्क़ी नहीं पाते, इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी कमजोरी को दूसरों से तो जरूर छिपाते हैं लेकिन उनको अपनी कमजोरियों का भरपूर आभास होता है और वे भ्रम में जीकर अपने परिश्रम को रोकते नहीं। सफलता ऐसे लोगों के कदमों को चूमती है। उन्हें पता है कि किस्मत तो केवल एक बहाना है लेकिन परिश्रम का कोई बहाना नहीं है। ऐसे लोग निरंतर परिश्रम करते रहते हैं। गलतियां भी उन्ही से होती हैं जो परिश्रम करते हैं। असफलता और गलतियों के डर से परिश्रम करना नहीं छोड़ना चाहिए। पिछली गलती को फिर न दोहरा कर ही नए युग में प्रवेश किया जा सकता है। ऐसे लोग अपनी काबिलियत को एक बहाना समझते हैं और नये आयाम पाते हैं।

-Rakesh Raturi