कुछ पल मिले थे ख़ुशी
से जीने को,
वो भी ले लिया तूने
ओ ख़ुदा।
अभी तो हुआ था मोहब्बत
का आगाज़ ,
तूने तो उसका अंजाम दे
दिया।
अभी तो नापी थी उनकी
आँखों की गहराई को ,
ज़रा और डूबने तो देते
हमको।
अभी तो उलझे थे उसकी
लहराती ज़ुल्फ़ों में ,
ज़रा सुलझाने तो देते उसे
हमे।
आखिर बोले “मुसाफिर”
उठना।
मोहब्बत न दी उसका ग़म
नहीं ऐ खुदा ,
लेकिन ज़रा जीने की वजह
तो देते हमे।
रास्ता न दिखा मुझ
“मुसाफिर” को ,
लेकिन ज़रा मंज़िल तो बता
मुझको।
Akash Vasava
akash361997@yahoo.in