नसीब हमेशा साथ नहीं देता है, कभी हँसाता है तो कभी रुला जाता है।
मगर तू मुझे नसीब पे नहीं खुद पे यकिन् दिलाता है।
दिन भर की थकान के बाद तुजसे लिपट ना अलग सुकून दे जाता है ।
जब भी उम्मीद छोड ने लगती हूँ , हर आशा निराशा में बदल जाती है ।
दिन भर की थकान् के बाद तुजसे लिपट ना अलग सुकून दे जाता है ।
तुजसे मिलना इतेफाक् सा लगता है, तेरा साथ होना ख्वाब सा लगता है ।
तुजसे दूर होने का डर रातो की नींद को अपने साथ ले जाता है ।
मगर न जाने क्यों तेरा शब्द फिर मुझे अपने साथ रहने का यकीन दिलाता है ।
कभी कभी सोचती हूँ इतना कैसे तू मेरे जैसा है?
तेरी पसंद और नापसन्द बिलकुल मुज जैसा है।
लगता है कोई इतेफाक तो नहीं ,और अगर इतेफाक है तोह इतेफाक ही सही ।
और फिर अपने ही सोच पे मुस्कुराते हे ।
दिन भर की थकान के बाद तुजसे लिपट ना अलग सुकून दे जाता है ।
शायद मैं कभी कहती नहीं, पर खोने से तो मे भी डरती हूँ ।
लड़ लेती हूँ खुदसे तेरे भरोसे, क्यों की तू मुझे लाखो के भीड़ में अलग सा लगता है ।
दिन भर की थकान् के बाद तुजसे लिपट ना अलग सुकून दे जाता है ।
आखिर में बस इतना ही कहना है । तेरा साथ होना और मेरा हाथ हलके से पकड़ना ही मेरे लिए काफी है ।
बस यूँही बाते करना, बस यूँही साथ रहना, बस यूँही एक दूसरे का फ़िक्र करना, शायद इसी को प्यार कहते है।
कोई और क्या सोचता है मुझे क्यों फ़िक्र करना, क्यों की आज कल मेरे सपने में तू ही तो आया करता है ।